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भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency & Bankruptcy Code )

संदर्भ

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड यानी दिवालिया कानून (Insolvency & Bankruptcy Code-IBC) में बदलाव की मांग को खारिज करते हुए इसे संपूर्ण बनाए रखने के पक्ष में फैसला सुनाया है। 16 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में स्विस रिबंस, शिवम वाटर ट्रीटर्स और गणेश प्रसाद पांडेय ने इस कानून की कई धाराओं, विशेषकर 7, 12 और 29 के प्रावधानों को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि IBC केवल कर्ज़ देने वालों के अधिकारों को संरक्षित करता है।

आपको बता दें कि इस कानून के तहत दिवालिया हो चुकी कंपनियों की नीलामी में कंपनी के प्रमोटर के शामिल होने पर रोक लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोड में एकमात्र बदलाव संबंधित व्यक्ति की परिभाषा में होगा और नई परिभाषा के मुताबिक वही व्यक्ति संबंधित माना जाएगा, जो कर्ज़दाता या डिफॉल्ट कर चुकी कंपनी से संबंधित होगा। जस्टिस आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वे 'संपूर्णता' में इस कोड की संवैधानिक वैधता को मान्यता देते हैं।

धारा 7, 12 और 29

IBC की सामान्य कार्य प्रक्रिया

दिवालिया कानून समिति का गठन

16 नवम्बर, 2017 को केंद्र सरकार ने दिवालिया कानून समिति का गठन केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में दिवालियापन और दिवालियापन संहिता के क्रियान्वयन तथा कार्यान्वयन के लिये किया था। इस समिति को कॉर्पोरेट दिवालियापन संकल्प और परिसमापन ढाँचे की दक्षता को प्रभावित करने वाले विषयों की पहचान करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। इस कमेटी ने कुछ सिफारिशें दीं, जिनसे इस कोड का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना संभव हो सका है। इसके अलावा निर्धारित प्रक्रियाओं की दक्षता में वृद्धि के साथ इस कोड का प्रभावी क्रियान्वयन भी सुनिश्चित हुआ है।

क्यों ज़रूरत पड़ी इस कोड की?

दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकती हैं और यदि कोई इकाई दिवालिया होती है तो इसका तात्पर्य यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर कर्ज़दाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। देश में इससे पहले तक दिवालियापन से संबंधित कम-से-कम 12 कानून थे, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।

NPA समस्या के समाधान में सहायक IBC

NCLT और NCLAT का गठन

1 जून 2016 को सरकार ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal-NCLT) और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील प्राधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT) का गठन किया। इनका गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत किया गया। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने इनके लिये अधिसूचना जारी की थी और ये तत्काल रूप NCLAT की 11 पीठ हैं, जिनमें से इसकी मुख्य शाखा सहित दो नई दिल्ली में और अहमदाबाद, इलाहाबाद, बंगलूरु, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता तथा मुंबई में एक-एक पीठ है। NCLAT के गठन के बाद कंपनी कानून 1956 के तहत गठित कंपनी कानून बोर्ड भंग हो गया। गौरतलब है कि कंपनी कानून 1956 के स्थान पर कंपनी अधिनियम, 2013 लाया गया है।

किसी कारोबारी द्वारा बैंकों का कर्ज़ चुकता न किये जाने से न सिर्फ बैंकों की सेहत खराब होती है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर होती है; क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के नुकसान की भरपाई अंततः सरकारी खज़ाने से करनी पड़ती है। इसीलिये इस कोड के तहत ऋणशोधन अक्षमता के समाधान के लिये जहाँ कहीं भी संभव हो वहां एक बाजार तंत्र और जहाँ ज़रूरी हो वहां निकासी सुविधा प्रदान की जा रही है। यह कोड भुगतान स्‍थगित कर कर्ज़ के पुनर्वित्‍तीयन और गैर-मियादी ऋण की संस्‍कृति को बदल रहा है।